
रवि-समान संघर्ष की चेतना
“शुभ प्रभात शुभ ही शुभ होगा हर उस जगह, जहां से रवि का रथ गुजरेगा…”
जो व्यक्ति सूर्य की महत्ता को जान लेता है, उसकी ऊष्मा को आत्मसात कर लेता है — उसकी जय सुनिश्चित है।
जीवन में चाहे जितने भी संघर्ष हों, यदि तुम रवि समान कर्तव्य-पथ पर डटे रहो, तो विजय तुम्हारी होगी।
कभी आवश्यकता पड़े तो उष्मा होते हुए भी शांत रहो, और कभी जरूरत हो तो उसी ऊष्मा से अंगार बनो।
तुममें ही सब कुछ है।
यदि तुम कुछ पल हर रविवार स्वयं के साथ बिताओ, तो तुम्हें अपने ही भीतर अनगिनत अनसुलझे सवालों के जवाब मिलने लगेंगे।
तुम्हारे भीतर जो अद्भुत शक्तियों का स्रोत है, वह उजागर होगा — और तुम्हारा मन ओत-प्रोत हो जाएगा आत्मबल से।
21वीं सदी की विषमता का यथार्थ
आज के युग में ‘वर्क फ्रॉम होम’ एक वर्ग के लिए सुविधा और सफलता का पर्याय बन गया है।
वह कर्मचारी अपने ही घर से, अपनों के संग रहकर, मनचाही आमदनी और लक्ष्यों को हासिल कर रहा है।
लेकिन इसके विपरीत, छोटे-मझौले उद्यमी…
जो दिन के 15 घंटे दुकान, ऑफिस या फैक्ट्री में खपा रहे हैं,
वे बिजली, किराया, वेतन और पानी जैसी बुनियादी ज़रूरतों के लिए जूझ रहे हैं।
बचेगा वही जो भीतर से प्रज्वलित रहेगा।
अब समय है कि हम रवि से भी पहले जागें —
नींद से नहीं,
आलस्य से, भ्रम से, और असहायता की मानसिकता से।
भीतर की शक्ति को पहचानो – यही पहला कदम है।
व्यवहारिक उपाय अपनाओ – तकनीक, सहयोग, नीति-समझ।
– किशोर कुमार दास भारतीय
3 अगस्त 2025
